One of my all time favourite poems by Dr. Harivansh Rai Bachchan.
मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा, फ़िर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत, करती मेरी मधुशाला. १
प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूणर् निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूँगा मैं, तुझपर जग की मधुशाला. २
भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
कभी न कण- भर ख़ाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!
पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला. ३
मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला,
' किस पथ से जाऊँ? ' असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग- अलग पथ बतलाते सब, पर मैं यह बतलाता हूँ -
' राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला.' ४
चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला!
' दूर अभी है ' , पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला,
हिम्मत है न बढ़ूँ आगे, साहस है न फ़िरूँ पीछे,
किंकतर्व्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला. ५
मुख से तू अविरत कहता जा मधु, मदिरा, मादक हाला,
हाथों में अनुभव करता जा एक ललित कल्पित प्याला,
ध्यान किए जा मन में सुमधुर सुखकर, सुंदर साकी का,
और बढ़ा चल, पथिक, न तुझको दूर लगेगी मधुशाला. ६
मदिरा पीने की अभिलाषा ही बन जाए जब हाला,
अधरों की आतुरता में ही जब आभासित हो प्याला,
बने ध्यान ही करते- करते जब साकी साकार, सखे,
रहे न हाला, प्याला साकी, तुझे मिलेगी मधुशाला. ७
हाथों में आने से पहले नाज़ दिखाएगा प्याला,
अधरों पर आने से पहले अदा दिखाएगी हाला,
बहुतेरे इनकार करेगा साकी आने से पहले,
पथिक, न घबरा जाना, पहले मान करेगी मधुशाला. ८
लाल सुरा की धार लपट सी कह न इसे देना ज्वाला,
फ़ेनिल मदिरा है, मत इसको कह देना उर का छाला,
ददर् नशा है इस मदिरा का विगतस्मृतियाँ साकी हैं,
पीड़ा में आनंद जिसे हो, आये मेरी मधुशाला. ९
लालायित अधरों से जिसने, हाय, नहीं चूमी हाला,
हषर्- विकंपित कर से जिसने हा, न छुआ मधु का प्याला,
हाथ पकड़ लज्जित साकी का पास नहीं जिसने खींचा,
व्यर्थ सुखा डाली जीवन की उसने मधुमय मधुशाला. १०
नहीं जानता कौन, मनुज आया बनकर पीनेवाला,
कौन अपरिचित उस साकी से जिसने दूध पिला पाला,
जीवन पाकर मानव पीकर मस्त रहे, इस कारण ही,
जग में आकर सवसे पहले पाई उसने मधुशाला. ११
सूयर् बने मधु का विक्रेता, सिंधु बने घट, जल, हाला,
बादल बन- बन आए साकी, भूमि बने मधु का प्याला,
झड़ी लगाकर बरसे मदिरा रिमझिम, रिमझिम, रिमझिम कर,
बेलि, विटप, तृण बन मैं पीऊँ, वर्षा ऋतु हो मधुशाला. १२
अधरों पर हो कोई भी रस जिह्वा पर लगती हाला,
भाजन हो कोई हाथों में लगता रक्खा है प्याला,
हर सूरत साकी की सूरत में परिवतिर्त हो जाती,
आँखों के आगे हो कुछ भी, आँखों में है मधुशाला. १३
साकी बन आती है प्रातः जब अरुणा ऊषा बाला,
तारक- मणि- मंडित चादर दे मोल धरा लेती हाला,
अगणित कर- किरणों से जिसको पी, खग पागल हो गाते,
प्रति प्रभात में पूणर् प्रकृति में मुखरित होती मधुशाला. १४
साकी बन मुरली आई साथ लिए कर में प्याला,
जिनमें वह छलकाती लाई अधर- सुधा- रस की हाला,
योगिराज कर संगत उसकी नटवर नागर कहलाए,
देखो कैसें- कैसों को है नाच नचाती मधुशाला. १५
वादक बन मधु का विक्रेता लाया सुर- सुमधुर- हाला,
रागिनियाँ बन साकी आई भरकर तारों का प्याला,
विक्रेता के संकेतों पर दौड़ लयों, आलापों में,
पान कराती श्रोतागण को, झंकृत वीणा मधुशाला. १६
चित्रकार बन साकी आता लेकर तूली का प्याला,
जिसमें भरकर पान कराता वह बहु रस- रंगी हाला,
मन के चित्र जिसे पी- पीकर रंग- बिरंग हो जाते,
चित्रपटी पर नाच रही है एक मनोहर मधुशाला. १७
हिम श्रेणी अंगूर लता- सी फ़ैली, हिम जल है हाला,
चंचल नदियाँ साकी बनकर, भरकर लहरों का प्याला,
कोमल कूर- करों में अपने छलकाती निशिदिन चलतीं,
पीकर खेत खड़े लहराते, भारत पावन मधुशाला. १८
आज मिला अवसर, तब फ़िर क्यों मैं न छकूँ जी- भर हाला
आज मिला मौका, तब फ़िर क्यों ढाल न लूँ जी- भर प्याला,
छेड़छाड़ अपने साकी से आज न क्यों जी- भर कर लूँ,
एक बार ही तो मिलनी है जीवन की यह मधुशाला. १९
दो दिन ही मधु मुझे पिलाकर ऊब उठी साकीबाला,
भरकर अब खिसका देती है वह मेरे आगे प्याला,
नाज़, अदा, अंदाजों से अब, हाय पिलाना दूर हुआ,
अब तो कर देती है केवल फ़ज़र् - अदाई मधुशाला. २०
छोटे- से जीवन में कितना प्यार करूँ, पी लूँ हाला,
आने के ही साथ जगत में कहलाया ' जानेवाला' ,
स्वागत के ही साथ विदा की होती देखी तैयारी,
बंद लगी होने खुलते ही मेरी जीवन- मधुशाला. २१
क्या पीना, निद्वर्न्द्व न जब तक ढाला प्यालों पर प्याला,
क्या जीना, निरिंचत न जब तक साथ रहे साकीबाला,
खोने का भय, हाय, लगा है पाने के सुख के पीछे,
मिलने का आनंद न देती मिलकर के भी मधुशाला. २२
मुझे पिलाने को लाए हो इतनी थोड़ी- सी हाला!
मुझे दिखाने को लाए हो एक यही छिछला प्याला!
इतनी पी जीने से अच्छा सागर की ले प्यास मरूँ,
सिंधु- तृषा दी किसने रचकर बिंदु- बराबर मधुशाला. २३
क्षीण, क्षुद्र, क्षणभंगुर, दुबर्ल मानव मिट्टी का प्याला,
भरी हुई है जिसके अंदर कटु- मधु जीवन की हाला,
मृत्यु बनी है निदर्य साकी अपने शत- शत कर फ़ैला,
काल प्रबल है पीनेवाला, संसृति है यह मधुशाला. २४
यम आयेगा साकी बनकर साथ लिए काली हाला,
पी न होश में फ़िर आएगा सुरा- विसुध यह मतवाला,
यह अंतिम बेहोशी, अंतिम साकी, अंतिम प्याला है,
पथिक, प्यार से पीना इसको फ़िर न मिलेगी मधुशाला. २५
शांत सकी हो अब तक, साकी, पीकर किस उर की ज्वाला,
' और, और' की रटन लगाता जाता हर पीनेवाला,
कितनी इच्छाएँ हर जानेवाला छोड़ यहाँ जाता!
कितने अरमानों की बनकर कब्र खड़ी है मधुशाला. २६
जो हाला मैं चाह रहा था, वह न मिली मुझको हाला,
जो प्याला मैं माँग रहा था, वह न मिला मुझको प्याला,
जिस साकी के पीछे मैं था दीवाना, न मिला साकी,
जिसके पीछे था मैं पागल, हा न मिली वह मधुशाला! २७
देख रहा हूँ अपने आगे कब से माणिक- सी हाला,
देख रहा हूँ अपने आगे कब से कंचन का प्याला,
' बस अब पाया! ' - कह- कह कब से दौड़ रहा इसके पीछे,
किंतु रही है दूर क्षितिज- सी मुझसे मेरी मधुशाला. २८
हाथों में आने- आने में, हाय, फ़िसल जाता प्याला,
अधरों पर आने- आने में हाय, ढलक जाती हाला,
दुनियावालो, आकर मेरी किस्मत की ख़ूबी देखो,
रह- रह जाती है बस मुझको मिलते- मिलते मधुशाला. २९
प्राप्य नही है तो, हो जाती लुप्त नहीं फ़िर क्यों हाला,
प्राप्य नही है तो, हो जाता लुप्त नहीं फ़िर क्यों प्याला,
दूर न इतनी हिम्मत हारूँ, पास न इतनी पा जाऊँ,
व्यर्थ मुझे दौड़ाती मरु में मृगजल बनकर मधुशाला. ३०
मदिरालय में कब से बैठा, पी न सका अब तक हाला,
यत्न सहित भरता हूँ, कोई किंतु उलट देता प्याला,
मानव- बल के आगे निबर्ल भाग्य, सुना विद्यालय में,
' भाग्य प्रबल, मानव निर्बल' का पाठ पढ़ाती मधुशाला. ३१
उस प्याले से प्यार मुझे जो दूर हथेली से प्याला,
उस हाला से चाव मुझे जो दूर अधर से है हाला,
प्यार नहीं पा जाने में है, पाने के अरमानों में!
पा जाता तब, हाय, न इतनी प्यारी लगती मधुशाला. ३२
मद, मदिरा, मधु, हाला सुन- सुन कर ही जब हूँ मतवाला,
क्या गति होगी अधरों के जब नीचे आएगा प्याला,
साकी, मेरे पास न आना मैं पागल हो जाऊँगा,
प्यासा ही मैं मस्त, मुबारक हो तुमको ही मधुशाला. ३३
क्या मुझको आवश्यकता है साकी से माँगूँ हाला,
क्या मुझको आवश्यकता है साकी से चाहूँ प्याला,
पीकर मदिरा मस्त हुआ तो प्यार किया क्या मदिरा से!
मैं तो पागल हो उठता हूँ सुन लेता यदि मधुशाला. ३४
एक समय संतुष्ट बहुत था पा मैं थोड़ी- सी हाला,
भोला- सा था मेरा साकी, छोटा- सा मेरा प्याला,
छोटे- से इस जग की मेरे स्वगर् बलाएँ लेता था,
विस्तृत जग में, हाय, गई खो मेरी नन्ही मधुशाला! ३५
मैं मदिरालय के अंदर हूँ, मेरे हाथों में प्याला,
प्याले में मदिरालय बिंबित करनेवाली है हाला,
इस उधेड़- बुन में ही मेरा सारा जीवन बीत गया -
मैं मधुशाला के अंदर या मेरे अंदर मधुशाला! ३६
किसे नहीं पीने से नाता, किसे नहीं भाता प्याला,
इस जगती के मदिरालय में तरह- तरह की है हाला,
अपनी- अपनी इच्छा के अनुसार सभी पी मदमाते,
एक सभी का मादक साकी, एक सभी की मधुशाला. ३७
वह हाला, कर शांत सके जो मेरे अंतर की ज्वाला,
जिसमें मैं बिंबित- प्रतिबिंबित प्रतिपल, वह मेरा प्याला,
मधुशाला वह नहीं जहाँ पर मदिरा बेची जाती है,
भेंट जहाँ मस्ती की मिलती मेरी तो वह मधुशाला. ३८
मतवालापन हाला से ले मैंने तज दी है हाला,
पागलपन लेकर प्याले से, मैंने त्याग दिया प्याला,
साकी से मिल, साकी में मिल अपनापन मैं भूल गया,
मिल मधुशाला की मधुता में भूल गया मैं मधुशाला. ३९
कहाँ गया वह स्वगिर्क साकी, कहाँ गयी सुरभित हाला,
कहाँ गया स्वपनिल मदिरालय, कहाँ गया स्वणिर्म प्याला!
पीनेवालों ने मदिरा का मूल्य, हाय, कब पहचाना?
फ़ूट चुका जब मधु का प्याला, टूट चुकी जब मधुशाला. ४०
अपने युग में सबको अनुपम ज्ञात हुई अपनी हाला,
अपने युग में सबको अद्भुत ज्ञात हुआ अपना प्याला,
फ़िर भी वृद्धों से जब पूछा एक यही उत्तर पाया -
अब न रहे वे पीनेवाले, अब न रही वह मधुशाला! ४१
कितने ममर् जता जानी है बार- बार आकर हाला,
कितने भेद बता जाता है बार- बार आकर प्याला,
कितने अथोर् को संकेतों से बतला जाता साकी,
फ़िर भी पीनेवालों को है एक पहेली मधुशाला. ४२
जितनी दिल की गहराई हो उतना गहरा है प्याला,
जितनी मन की मादकता हो उतनी मादक है हाला,
जितनी उर की भावुकता हो उतना सुन्दर साकी है,
जितना ही जो रसिक, उसे है उतनी रसमय मधुशाला. ४३
मेरी हाला में सबने पाई अपनी- अपनी हाला,
मेरे प्याले में सबने पाया अपना- अपना प्याला,
मेरे साकी में सबने अपना प्यारा साकी देखा,
जिसकी जैसी रूचि थी उसने वैसी देखी मधुशाला. ४४
यह मदिरालय के आँसू हैं, नहीं- नहीं मादक हाला,
यह मदिरालय की आँखें हैं, नहीं- नहीं मधु का प्याला,
किसी समय की सुखदस्मृति है साकी बनकर नाच रही,
नहीं- नहीं कवि का हृदयांगण, यह विरहाकुल मधुशाला. ४५
कुचल हसरतें कितनी अपनी, हाय, बना पाया हाला,
कितने अरमानों को करके ख़ाक बना पाया प्याला!
पी पीनेवाले चल देंगे, हाय, न कोई जानेगा,
कितने मन के महल ढहे तब खड़ी हुई यह मधुशाला! ४६
विश्व तुम्हारे विषमय जीवन में ला पाएगी हाला
यदि थोड़ी- सी भी यह मेरी मदमाती साकीबाला,
शून्य तुम्हारी घड़ियाँ कुछ भी यदि यह गुंजित कर पाई,
जन्म सफ़ल समझेगी जग में अपना मेरी मधुशाला. ४७
बड़े- बड़े नाज़ों से मैंने पाली है साकीबाला,
कलित कल्पना का ही इसने सदा उठाया है प्याला,
मान- दुलारों से ही रखना इस मेरी सुकुमारी को,
विश्व, तुम्हारे हाथों में अब सौंप रहा हूँ मधुशाला. ४८
मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा, फ़िर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत, करती मेरी मधुशाला. १
प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूणर् निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूँगा मैं, तुझपर जग की मधुशाला. २
भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
कभी न कण- भर ख़ाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!
पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला. ३
मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला,
' किस पथ से जाऊँ? ' असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग- अलग पथ बतलाते सब, पर मैं यह बतलाता हूँ -
' राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला.' ४
चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला!
' दूर अभी है ' , पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला,
हिम्मत है न बढ़ूँ आगे, साहस है न फ़िरूँ पीछे,
किंकतर्व्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला. ५
मुख से तू अविरत कहता जा मधु, मदिरा, मादक हाला,
हाथों में अनुभव करता जा एक ललित कल्पित प्याला,
ध्यान किए जा मन में सुमधुर सुखकर, सुंदर साकी का,
और बढ़ा चल, पथिक, न तुझको दूर लगेगी मधुशाला. ६
मदिरा पीने की अभिलाषा ही बन जाए जब हाला,
अधरों की आतुरता में ही जब आभासित हो प्याला,
बने ध्यान ही करते- करते जब साकी साकार, सखे,
रहे न हाला, प्याला साकी, तुझे मिलेगी मधुशाला. ७
हाथों में आने से पहले नाज़ दिखाएगा प्याला,
अधरों पर आने से पहले अदा दिखाएगी हाला,
बहुतेरे इनकार करेगा साकी आने से पहले,
पथिक, न घबरा जाना, पहले मान करेगी मधुशाला. ८
लाल सुरा की धार लपट सी कह न इसे देना ज्वाला,
फ़ेनिल मदिरा है, मत इसको कह देना उर का छाला,
ददर् नशा है इस मदिरा का विगतस्मृतियाँ साकी हैं,
पीड़ा में आनंद जिसे हो, आये मेरी मधुशाला. ९
लालायित अधरों से जिसने, हाय, नहीं चूमी हाला,
हषर्- विकंपित कर से जिसने हा, न छुआ मधु का प्याला,
हाथ पकड़ लज्जित साकी का पास नहीं जिसने खींचा,
व्यर्थ सुखा डाली जीवन की उसने मधुमय मधुशाला. १०
नहीं जानता कौन, मनुज आया बनकर पीनेवाला,
कौन अपरिचित उस साकी से जिसने दूध पिला पाला,
जीवन पाकर मानव पीकर मस्त रहे, इस कारण ही,
जग में आकर सवसे पहले पाई उसने मधुशाला. ११
सूयर् बने मधु का विक्रेता, सिंधु बने घट, जल, हाला,
बादल बन- बन आए साकी, भूमि बने मधु का प्याला,
झड़ी लगाकर बरसे मदिरा रिमझिम, रिमझिम, रिमझिम कर,
बेलि, विटप, तृण बन मैं पीऊँ, वर्षा ऋतु हो मधुशाला. १२
अधरों पर हो कोई भी रस जिह्वा पर लगती हाला,
भाजन हो कोई हाथों में लगता रक्खा है प्याला,
हर सूरत साकी की सूरत में परिवतिर्त हो जाती,
आँखों के आगे हो कुछ भी, आँखों में है मधुशाला. १३
साकी बन आती है प्रातः जब अरुणा ऊषा बाला,
तारक- मणि- मंडित चादर दे मोल धरा लेती हाला,
अगणित कर- किरणों से जिसको पी, खग पागल हो गाते,
प्रति प्रभात में पूणर् प्रकृति में मुखरित होती मधुशाला. १४
साकी बन मुरली आई साथ लिए कर में प्याला,
जिनमें वह छलकाती लाई अधर- सुधा- रस की हाला,
योगिराज कर संगत उसकी नटवर नागर कहलाए,
देखो कैसें- कैसों को है नाच नचाती मधुशाला. १५
वादक बन मधु का विक्रेता लाया सुर- सुमधुर- हाला,
रागिनियाँ बन साकी आई भरकर तारों का प्याला,
विक्रेता के संकेतों पर दौड़ लयों, आलापों में,
पान कराती श्रोतागण को, झंकृत वीणा मधुशाला. १६
चित्रकार बन साकी आता लेकर तूली का प्याला,
जिसमें भरकर पान कराता वह बहु रस- रंगी हाला,
मन के चित्र जिसे पी- पीकर रंग- बिरंग हो जाते,
चित्रपटी पर नाच रही है एक मनोहर मधुशाला. १७
हिम श्रेणी अंगूर लता- सी फ़ैली, हिम जल है हाला,
चंचल नदियाँ साकी बनकर, भरकर लहरों का प्याला,
कोमल कूर- करों में अपने छलकाती निशिदिन चलतीं,
पीकर खेत खड़े लहराते, भारत पावन मधुशाला. १८
आज मिला अवसर, तब फ़िर क्यों मैं न छकूँ जी- भर हाला
आज मिला मौका, तब फ़िर क्यों ढाल न लूँ जी- भर प्याला,
छेड़छाड़ अपने साकी से आज न क्यों जी- भर कर लूँ,
एक बार ही तो मिलनी है जीवन की यह मधुशाला. १९
दो दिन ही मधु मुझे पिलाकर ऊब उठी साकीबाला,
भरकर अब खिसका देती है वह मेरे आगे प्याला,
नाज़, अदा, अंदाजों से अब, हाय पिलाना दूर हुआ,
अब तो कर देती है केवल फ़ज़र् - अदाई मधुशाला. २०
छोटे- से जीवन में कितना प्यार करूँ, पी लूँ हाला,
आने के ही साथ जगत में कहलाया ' जानेवाला' ,
स्वागत के ही साथ विदा की होती देखी तैयारी,
बंद लगी होने खुलते ही मेरी जीवन- मधुशाला. २१
क्या पीना, निद्वर्न्द्व न जब तक ढाला प्यालों पर प्याला,
क्या जीना, निरिंचत न जब तक साथ रहे साकीबाला,
खोने का भय, हाय, लगा है पाने के सुख के पीछे,
मिलने का आनंद न देती मिलकर के भी मधुशाला. २२
मुझे पिलाने को लाए हो इतनी थोड़ी- सी हाला!
मुझे दिखाने को लाए हो एक यही छिछला प्याला!
इतनी पी जीने से अच्छा सागर की ले प्यास मरूँ,
सिंधु- तृषा दी किसने रचकर बिंदु- बराबर मधुशाला. २३
क्षीण, क्षुद्र, क्षणभंगुर, दुबर्ल मानव मिट्टी का प्याला,
भरी हुई है जिसके अंदर कटु- मधु जीवन की हाला,
मृत्यु बनी है निदर्य साकी अपने शत- शत कर फ़ैला,
काल प्रबल है पीनेवाला, संसृति है यह मधुशाला. २४
यम आयेगा साकी बनकर साथ लिए काली हाला,
पी न होश में फ़िर आएगा सुरा- विसुध यह मतवाला,
यह अंतिम बेहोशी, अंतिम साकी, अंतिम प्याला है,
पथिक, प्यार से पीना इसको फ़िर न मिलेगी मधुशाला. २५
शांत सकी हो अब तक, साकी, पीकर किस उर की ज्वाला,
' और, और' की रटन लगाता जाता हर पीनेवाला,
कितनी इच्छाएँ हर जानेवाला छोड़ यहाँ जाता!
कितने अरमानों की बनकर कब्र खड़ी है मधुशाला. २६
जो हाला मैं चाह रहा था, वह न मिली मुझको हाला,
जो प्याला मैं माँग रहा था, वह न मिला मुझको प्याला,
जिस साकी के पीछे मैं था दीवाना, न मिला साकी,
जिसके पीछे था मैं पागल, हा न मिली वह मधुशाला! २७
देख रहा हूँ अपने आगे कब से माणिक- सी हाला,
देख रहा हूँ अपने आगे कब से कंचन का प्याला,
' बस अब पाया! ' - कह- कह कब से दौड़ रहा इसके पीछे,
किंतु रही है दूर क्षितिज- सी मुझसे मेरी मधुशाला. २८
हाथों में आने- आने में, हाय, फ़िसल जाता प्याला,
अधरों पर आने- आने में हाय, ढलक जाती हाला,
दुनियावालो, आकर मेरी किस्मत की ख़ूबी देखो,
रह- रह जाती है बस मुझको मिलते- मिलते मधुशाला. २९
प्राप्य नही है तो, हो जाती लुप्त नहीं फ़िर क्यों हाला,
प्राप्य नही है तो, हो जाता लुप्त नहीं फ़िर क्यों प्याला,
दूर न इतनी हिम्मत हारूँ, पास न इतनी पा जाऊँ,
व्यर्थ मुझे दौड़ाती मरु में मृगजल बनकर मधुशाला. ३०
मदिरालय में कब से बैठा, पी न सका अब तक हाला,
यत्न सहित भरता हूँ, कोई किंतु उलट देता प्याला,
मानव- बल के आगे निबर्ल भाग्य, सुना विद्यालय में,
' भाग्य प्रबल, मानव निर्बल' का पाठ पढ़ाती मधुशाला. ३१
उस प्याले से प्यार मुझे जो दूर हथेली से प्याला,
उस हाला से चाव मुझे जो दूर अधर से है हाला,
प्यार नहीं पा जाने में है, पाने के अरमानों में!
पा जाता तब, हाय, न इतनी प्यारी लगती मधुशाला. ३२
मद, मदिरा, मधु, हाला सुन- सुन कर ही जब हूँ मतवाला,
क्या गति होगी अधरों के जब नीचे आएगा प्याला,
साकी, मेरे पास न आना मैं पागल हो जाऊँगा,
प्यासा ही मैं मस्त, मुबारक हो तुमको ही मधुशाला. ३३
क्या मुझको आवश्यकता है साकी से माँगूँ हाला,
क्या मुझको आवश्यकता है साकी से चाहूँ प्याला,
पीकर मदिरा मस्त हुआ तो प्यार किया क्या मदिरा से!
मैं तो पागल हो उठता हूँ सुन लेता यदि मधुशाला. ३४
एक समय संतुष्ट बहुत था पा मैं थोड़ी- सी हाला,
भोला- सा था मेरा साकी, छोटा- सा मेरा प्याला,
छोटे- से इस जग की मेरे स्वगर् बलाएँ लेता था,
विस्तृत जग में, हाय, गई खो मेरी नन्ही मधुशाला! ३५
मैं मदिरालय के अंदर हूँ, मेरे हाथों में प्याला,
प्याले में मदिरालय बिंबित करनेवाली है हाला,
इस उधेड़- बुन में ही मेरा सारा जीवन बीत गया -
मैं मधुशाला के अंदर या मेरे अंदर मधुशाला! ३६
किसे नहीं पीने से नाता, किसे नहीं भाता प्याला,
इस जगती के मदिरालय में तरह- तरह की है हाला,
अपनी- अपनी इच्छा के अनुसार सभी पी मदमाते,
एक सभी का मादक साकी, एक सभी की मधुशाला. ३७
वह हाला, कर शांत सके जो मेरे अंतर की ज्वाला,
जिसमें मैं बिंबित- प्रतिबिंबित प्रतिपल, वह मेरा प्याला,
मधुशाला वह नहीं जहाँ पर मदिरा बेची जाती है,
भेंट जहाँ मस्ती की मिलती मेरी तो वह मधुशाला. ३८
मतवालापन हाला से ले मैंने तज दी है हाला,
पागलपन लेकर प्याले से, मैंने त्याग दिया प्याला,
साकी से मिल, साकी में मिल अपनापन मैं भूल गया,
मिल मधुशाला की मधुता में भूल गया मैं मधुशाला. ३९
कहाँ गया वह स्वगिर्क साकी, कहाँ गयी सुरभित हाला,
कहाँ गया स्वपनिल मदिरालय, कहाँ गया स्वणिर्म प्याला!
पीनेवालों ने मदिरा का मूल्य, हाय, कब पहचाना?
फ़ूट चुका जब मधु का प्याला, टूट चुकी जब मधुशाला. ४०
अपने युग में सबको अनुपम ज्ञात हुई अपनी हाला,
अपने युग में सबको अद्भुत ज्ञात हुआ अपना प्याला,
फ़िर भी वृद्धों से जब पूछा एक यही उत्तर पाया -
अब न रहे वे पीनेवाले, अब न रही वह मधुशाला! ४१
कितने ममर् जता जानी है बार- बार आकर हाला,
कितने भेद बता जाता है बार- बार आकर प्याला,
कितने अथोर् को संकेतों से बतला जाता साकी,
फ़िर भी पीनेवालों को है एक पहेली मधुशाला. ४२
जितनी दिल की गहराई हो उतना गहरा है प्याला,
जितनी मन की मादकता हो उतनी मादक है हाला,
जितनी उर की भावुकता हो उतना सुन्दर साकी है,
जितना ही जो रसिक, उसे है उतनी रसमय मधुशाला. ४३
मेरी हाला में सबने पाई अपनी- अपनी हाला,
मेरे प्याले में सबने पाया अपना- अपना प्याला,
मेरे साकी में सबने अपना प्यारा साकी देखा,
जिसकी जैसी रूचि थी उसने वैसी देखी मधुशाला. ४४
यह मदिरालय के आँसू हैं, नहीं- नहीं मादक हाला,
यह मदिरालय की आँखें हैं, नहीं- नहीं मधु का प्याला,
किसी समय की सुखदस्मृति है साकी बनकर नाच रही,
नहीं- नहीं कवि का हृदयांगण, यह विरहाकुल मधुशाला. ४५
कुचल हसरतें कितनी अपनी, हाय, बना पाया हाला,
कितने अरमानों को करके ख़ाक बना पाया प्याला!
पी पीनेवाले चल देंगे, हाय, न कोई जानेगा,
कितने मन के महल ढहे तब खड़ी हुई यह मधुशाला! ४६
विश्व तुम्हारे विषमय जीवन में ला पाएगी हाला
यदि थोड़ी- सी भी यह मेरी मदमाती साकीबाला,
शून्य तुम्हारी घड़ियाँ कुछ भी यदि यह गुंजित कर पाई,
जन्म सफ़ल समझेगी जग में अपना मेरी मधुशाला. ४७
बड़े- बड़े नाज़ों से मैंने पाली है साकीबाला,
कलित कल्पना का ही इसने सदा उठाया है प्याला,
मान- दुलारों से ही रखना इस मेरी सुकुमारी को,
विश्व, तुम्हारे हाथों में अब सौंप रहा हूँ मधुशाला. ४८